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Hymn No. 65 | Date: 28-Dec-1996
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ऐसी कैसी प्यास लगी है तेरे मतवाले रूप की,
ऐसी कैसी प्यास लगी है तेरे मतवाले रूप की,
बढ़ती ही चली जाय बुझायें ना बुझे ।
क्या है जरूरत तुझे कैद करने की मंदिरों में,
भक्तों के प्रेम भरे गीतों को सुन तू दौडा चला आये ।
बखान कोई कर ना सकता तेरा, पढ ले कितने बड़े – बड़े प्यार के कसीदे
प्यार के फंदे में जो तेरे चढ गया, वहीं तेरे हृदय है लगता ।
भगत बहुत से है जहाँ मैं एक खोजो हजार मिलेंगे ।
बाज़ार के बाज़ार खाली है दिल वालों से, दिलदार के दर पे बारात मिलेंगी दिलवालों की ।
जलवा बहुत होगा देखा, इनके जलवे के आगे सब कुछ है फीका।
फांकामस्ती करतें हुये दीदार करते है प्रभु की, आबाद करते हुए सबको ।


- डॉ.संतोष सिंह