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Hymn No. 66 | Date: 31-Dec-1996
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जब – जब गिरा नजरों में अपने, तब – तब तूने मुझको उठाया ।
जब – जब गिरा नजरों में अपने, तब – तब तूने मुझको उठाया ।
कमियों का रोना हर वक्त रोया, नजरअंदाज किया उनको भी तूने ।
रह कर भी तेरे शरण में मैंने, अब तक तन – मन को जीत न पाया ।
सत्य से रहा दूर सदा, असत्य को मैंने गले से लगाया ।
हर गल्तियों के लिये दोष औरों को दिया, उनकी अच्छाइयों को ना स्वीकारा कभी ।
अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिये दलीले दी संतो की, तर्क का कुतर्क किया ।
असत्य बातों का खेल खेला मैं, हर बात की बाल की खाल निकाली ।


- डॉ.संतोष सिंह