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Hymn No. 63 | Date: 14-Dec-1996
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हर कण – तन में बसते है मेरे प्रभु,
हर कण – तन में बसते है मेरे प्रभु,
देख सकता है तू मन की आँखों से उनको ।
तन में आ के हम सब बँट गये हैं,
इस तन के, पिंजरे के बाहर हम सब तो है एक ।
नया ना है, कोई रिश्ता तेरा – मेरा,
भूला तू है, भूला ना है वो ।
अपने ही रूप में जनमाया है वो तुझको
नवाजा है तुझको अपने गुणों से ।
माता – पिता, भाई - बंधु हर रिश्ता – नाता है वो,
इससे बढ़के तू तो है उसका ही एक रूप ।


- डॉ.संतोष सिंह