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Hymn No. 61 | Date: 13-Dec-1996
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आज कल पत्थरों ने रूप धरा, इंसान का,
आज कल पत्थरों ने रूप धरा, इंसान का,
इंसानों के बोलतें बुत बन बैठे है निर्जीव ।
इंसानों की तलाश है इंसानों के बीच धरा पे,
चारों और बिखरे पड़े है हिंदू और मुसलमान ।
चली है चर्चा चारों और बड़ी जोर – शोर से,
इंसान नामका एक प्राणी होता जा रहा है लुप्त ।
खुदा ने खुद के रूप में ढाला था इंसान को,
इंसान ने कैद कर डाला खुदा को मंदिर और मस्जिदों में ।
देख इसकी प्रीत तू शरमा जायेगी शैतान की शैतानीयत,
जिंदे को मारा और मारके बुत बना डाला ।
बेशर्म है ये इतने, खुदा ने बनाया था एक जहाँ,
ना छोड़ा उसको भी बाँटा देश की सीमाओं में।
हद कर दी इसने, इस जहाँ को मिटाने पे है तुला,
खेल देख खुदा का, इंसान ने खुद को खुद से मिटा डाला ।


- डॉ.संतोष सिंह