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Hymn No. 54 | Date: 18-Nov-1996
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इंतजारी है तुझसे मुलाकात की, इस आस से चलती है साँस मेरी ।
इंतजारी है तुझसे मुलाकात की, इस आस से चलती है साँस मेरी ।
नाराजगी मेरी है ना तुझसे, अपने कर्मों के घेरे में बंध जाने से ।
पहले तन से था मैं तेरा, अब मन से हो जाना चाहता हूँ तेरा ।
गम ना है मुझको तुझको याद करने से, तुझे रह रहके भूल जाता है इसका है गम ।
तेरी इंतजारी का तीर है दिल में लगा, बेकरारी भी जाती है मन को गुदगुदा ।
जुदा रह नहीं सकता अब तुझसें, फिदा जो हो चुका दिल मेरा तुझपे ।
खुदा जो आश जगायी है तुनें मन में, पुरा करना होगा हमारें हर सपनें ।
कसमें देता ना हूँ तुझको, प्यार के फंदो को हूँ फेंकता तुझको अपना बनानें के लिये ।


- डॉ.संतोष सिंह