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Hymn No. 512 | Date: 18-Dec-1998
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डूब रहा है मन घोर अंधेरे में, आश की कीरन जला दें तू मेरे मन में ।
डूब रहा है मन घोर अंधेरे में, आश की कीरन जला दें तू मेरे मन में ।
आहत हूँ मैं अपने विचारों से, दूर कर दें मेरी निर्बलता को प्यार से अपने ।
रौंदा है मैंने अपना चमन खुद अपने हाथों से, गुलजार कर दें तू मेरा चमन ।
फर्क ना पड़ता है अगर कूछ भी घट जाये तो, घट गयीं कोई अनोखी घटना मेरे जीवन में कीसीको क्या है फर्क पड़ता।
सतबार हमकों ना हौ कीसी पे तेरे सिवाय, मेंरी हर बात अधुरी है तेरे बिना ।
सनम दे दें तू हमको कई जनम्, तेरे साथ ना है तो गया बीता है हमारा जनम ।
कहना तुझसे अभी बहुत कूछ बाकी है, मन में घुट के रह जाता है मौका नहीं पाता हूँ ।
जानत है मेरे इस जीवन को, जो अब तक इस दिल को तेरे दिल के संग जोड ना पाया ।
मेरे इस जीवन को आकार देना है तुझको, तू ही तो है मेरा परमपिता परमेश्वर।
मैं अभागा प्रारब्ध में बंधके मुश्किल में डाला तुझको कई - कई बार ।


- डॉ.संतोष सिंह