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Hymn No. 46 | Date: 26-Oct-1996
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तेरे होने न होने की बात क्यों करू मैं ।
तेरे होने न होने की बात क्यों करू मैं ।
मुझको तो बस तुमको भजना – भजते ही रहना है।
तू है या नहीं, इस प्रमाण की क्या जरूरत है मुझको,
मोहे कण – कण में तेरी झलक नजर आवें ।
हम सब तो है रंगमंच की कठपुतलियाँ,
जैसा नाच नचायेगा वैसा ही है नाचना ।
बीती बातें बिसार के लेना है तेरा नाम,
तेरे यहाँ से तेरे यहाँ ही लौट जाना है ।
सुख – दुःख में सुख दुःख से परे जपना है तुझको
जपते – जपते जाना है रमते तुझमें ही जाना है ।


- डॉ.संतोष सिंह