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Hymn No. 45 | Date: 26-Oct-1996
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रिश्ते – नाते सब छूट जाना है, आया है अकेला – अकेला ही जाना है ।
रिश्ते – नाते सब छूट जाना है, आया है अकेला – अकेला ही जाना है ।
गीत मेरा यह पुराना है, शब्द बदले पर अर्थ नहीं, लिखने वाले बदले,
बदला ना सार, सारे जहाँ की यही कहानी है ।
मूर्त को पूज या अमूर्त को, पूजना है तो पूज जो कण – कण में है समाया ।
किसने कहा – किससे कहा, कब कहा – कहाँ कहा, इसके फेर में ना पड़ तू ।
सार समझ ले जीवन का, पार हो जायेगा जीवन और मरण से ।
गीत मेरा यह पुराना है, जिसने जाना उसको न आना है ।
खोना और पाना है, जी – जी के भी पछताना है ।
अब तुझको मौन हो जान है, खुद को जान जान है गीत मेरा यह पुराना है ।


- डॉ.संतोष सिंह