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Hymn No. 44 | Date: 24-Oct-1996
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मुझे है तुझसे इतनी गुजारिश, शरण दे दे चरणों में अपने ।
मुझे है तुझसे इतनी गुजारिश, शरण दे दे चरणों में अपने ।
डर ना है मौहे इस जग से, डर है तो भटके हुये अपने मन से ।
जो आस की लौ जगायी है तूने किसी मनचली हवा के झोकें से बुझ न जाये ।
कहीं याद कर – करके तूझे भुला ना दूँ, डरता हूँ कहीं पाते – पाते तुझे खो ना दूँ ।
मैं पक्षी फंसा मन के जंजाल में, इससे मुक्त रखना है मुझको तुझे ।
प्यार के काबिल तेरा मैं तो नहीं, इस लायक बनाना है मुझको तुझे।
जान जाने से डरता नहीं मैं, तुझें न पाया तो जीना है मुश्किल मेरा ।
भाग्य में जो तू ना है, तो हाथों मेरे कोई करम करवा दे जो हाथ आ जाये तू मेरे ।


- डॉ.संतोष सिंह