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Hymn No. 40 | Date: 10-Oct-1996
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देर मत कर जो देना है दे दे, आशा और निराशा का खेल बहुत हो गया ।
देर मत कर जो देना है दे दे, आशा और निराशा का खेल बहुत हो गया ।
पाने और न पाने का गम है अब, पर तेरी झलक पानें को दिल है बेकरार ।
श्रध्दा और विश्वास के, सुमन को अर्पित करता हूँ लाज रखना है तुझे इसकी ।
कयामत के दिनों से और कयामत तक तू ही तू तू है, ना मैं हूँ ना ही रहूँगा ।
फर्क इतना ही है मेरा चोला बदलता गया, मैं तेरी माया में भटक के तुझसे दूर हो गया
करूणानिधि अब आशा को निराशा में ना बदल, सच्चे मन की है गुहार ।
स्वीकार कर ले, स्वीकार ले, स्वीकार लें तेरे चरणों में स्वीकार कर ले ।


- डॉ.संतोष सिंह