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Hymn No. 2875 | Date: 04-Nov-2004
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क्यों नहीं, क्यों नहीं खत्म होता जीवन में क्यों नहीं की तलाश।
क्यों नहीं, क्यों नहीं खत्म होता जीवन में क्यों नहीं की तलाश।
जब भी शुरूआत करता हूँ तो क्यों खत्म हो जाते है सारे प्रयास।
ये कैसा अंतरद्वंद है, जो जिंदगी को उसे बार बार एक ही बार मैं।
पूरी ना होने कभी मन की मुरव्वत, ना तोड़ पाऊँ आलस के बंधनो को।
प्रेम की पाती तो बहुत लिखी, उस लिखी पाती को उतार ना पाऊँ जीवन में।
संचार कर तू मेरे अंतर मैं, तेरी परम् शक्ति से तोड़ दू सारी हद्दों को।
ऐसा खो जाऊँ करने मैं मिले सामने तू मुझे, रह जाये तब कुछ कहने को।
रहमत बरसा दे ओ प्रभु, इस अहमक को बना ले सदा के वास्ते तू अभी।
ना रुकूं अब कुछ ओर के वास्ते, इस रूके हुये को बहा ले तू संग अपने।
देखना दिखाने से परे दूर कहीं मैं हो जाना चाहता हूँ तेरा अपना।


- डॉ.संतोष सिंह