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Hymn No. 2865 | Date: 02-Nov-2004
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झूठा होगा या सच्चा पर मक्कार नहीं प्रभु मैं,
झूठा होगा या सच्चा पर मक्कार नहीं प्रभु मैं,
कि होंगी लाखों गल्तियाँ, पर प्यार भी है तुझी से।
करना न चाहा ऐसा न था, पर समझ ना थी बंदगी की,
जीवन को भी ऐसे जिया, जैसे खेल गुड्डे - गुड़ियों का।
होश में तो अब भी नहीं, पर रहा नही में पहले जैसा,
चाहत को समझने लगा हूं, उसके लिये तड़पने लगा हूँ।
तू तो है अनंत सागर का हिस्सा, जो हमारी नैय्या को सवारे।
हिचकोले खाते हमारे जीवन को, उस पार तू लेके जाना।
खेवनहार रूप मैं तू आके, जीवन के रहस्य को तू समझाता,
छुटेगा न साथ इस बार, तेरे रहते तर जाऊँगा ओ तारनहार।


- डॉ.संतोष सिंह