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Hymn No. 2859 | Date: 29-Oct-2004
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तरसता हूँ ममतामयी तेरे रहते तेरे प्यार को,
तरसता हूँ ममतामयी तेरे रहते तेरे प्यार को,

चाहता हूँ करूणामयी आने को तेरे पास छोड़के संसार को।
बहुत हुआ अब ना सहा जाये, तेरे बिन अब ना रहा जाये,

सुकुन मिले जब हो मुलाकात, करता रहता हूँ हर पल इंतजार।
स्वरूप अलग था तब भी मस्ती के बाद मस्ती का आलम था।

दौर पे दौर चला करते थे पल पल नगमों और अफसानों के।
होश मैं रहते होश में ना थे, निगाहों से बरसते जाम को पिया करते थे,

तु भी कम न था पल भर को जो दम ना लेने देता था हमको।
एक के बाद दूजा प्याला, पल पल पिलाया करता था हमको,

समय के गुजरने का अहसास ना होता था पल भर को।
न जाने ऐसी कौन सी खता हुयी, वख्त के थेपेड़ो ने दूर कर डाला हमको,

दूर कर दे जिस्म से कितना भी, पर एक जान बन चुका हूँ तेरा।
नाच़ीज कितना भी भूला बनके भटकता फिरे तेरी दुनिया में,

पर उसका दिल खोया रहता यादों से भरे प्यार की दुनिया में।


- डॉ.संतोष सिंह