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Hymn No. 2854 | Date: 22-Oct-2004
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खिल रहा है एक मुरझाया फूल फिर से, राम तेरे प्रेम की संजीवनी को पीके।
खिल रहा है एक मुरझाया फूल फिर से, राम तेरे प्रेम की संजीवनी को पीके।
प्रेमगीत गाने को उधत हो रहा है मुरारी, तेरी बांसुरी की अमरतान को सुनके।
हर हालातों से लड़ने को तैयार हो रहा है काका तेरे अथक प्रयासों के चलते।
क्षुद्रता को त्यागके विशालता को अपना रहा है, मां तेरी दरियादिली को देख देखके।
हर भेद को तन मन से मिटाते बढ़ रहा है, घ्रुव तेरे दिखाये अटल सत्य की राह पे।


- डॉ.संतोष सिंह