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Hymn No. 2855 | Date: 23-Oct-2004
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मैं क्या कर सकता हूँ, बस तुझे याद कर सकता हूँ।
मैं क्या कर सकता हूँ, बस तुझे याद कर सकता हूँ।
अंतरमन के किसी कोने से तुझे, बस पुकार सकता हूँ।
बेबस हूँ कर्मों के आगे, फिर भी तुझसे फरियाद कर सकता हूँ।
ऐसा कुछ भी नहीं जहाँ मैं, जो तू कर ना सके हमारे वास्ते।
माना राह रोके खुद खड़े है, फिर भी क्या बिसात तेरे आगे।
मिल जायेंगे मिलने को बहुत कुछ, तुझसे बिछुड़के मिलने की क्याँ खुशी।
दाता सदा से तू एक है एक, स्वरूप बदल ले चाहे तू अनेक।
सधके जो चला होता तो सीधे तेरे पास पहुँचता, पर चलना भाया ही नहीं
अटक जाती है जुबाँ कहने को तुझसे, थरथराने लगते है कदम पहुँचते पास तेरे।
ये कैसी है सजा जो काटे ना कटे, तेरी आज्ञा से भी न हटे।


- डॉ.संतोष सिंह