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Hymn No. 2853 | Date: 22-Oct-2004
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अंतर की आवाज को शब्दों की पहचान ना दो, ये तो दिल की बात है दिल से जान लो।
अंतर की आवाज को शब्दों की पहचान ना दो, ये तो दिल की बात है दिल से जान लो।
दिल से उभरे, नजरों से झरे, जब खत्म हो जाये संवाद की सीमा तो शुरूआत हो मौन में।
उस प्रेम को अर्पित करता हूँ में तुझे, जो पल पल खींचे तेरी ओर मुझको।
मेरी भी है सीमा तेरी भी है कुछ मुश्किलें, ख्यालों के ठौर से जो तू मिलने चला आये।
माना गूजरा हुआ पल लौट के न आये कभी, पर ठहरा हूआ पल कभी न कभी गुजरे जो रोके है राह मुलाकातों से।
बादलों की तरह उमड़ते घुमड़ते हैं भाव दिल मैं, जो बिन सावन के नजरों से बरसता जाये।
हर हालात स्वीकार है तेरे पास रहने के वास्ते, जहाँ सब राह बंद हो जाये वहीं से शुरूआत हो प्रेम डगर की।
दायरे में बांधता हूँ मैं तुझे, मुखलिस नही होने देता प्रेम को अनंतता के छोर पे।
अनंत की उड़ान से पहले करनी होती है खुद से पहचान, खुद का मायने जब हो तू तो किस बात से हूँ अंजान।
न कोई मांग है, फिर भी दिल में प्यास है, सारे द्वार बंद है फिर भी आशा की किरण अंतर मैं जगमगाये।


- डॉ.संतोष सिंह