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Hymn No. 2845 | Date: 15-Oct-2004
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तन की क्या बिसात, जो थिरकता हूँ दिल की मौजों पे, तेरे प्यार का अहसास लेके।
तन की क्या बिसात, जो थिरकता हूँ दिल की मौजों पे, तेरे प्यार का अहसास लेके।
अपनों के मरने पे हसी आती है, पैदा होने वालों के लिये रोने का मन करता है।
बड़ी अजीब बात है उम्र के साथ जवानी छाये, जो सुरूर आँखों में हो वो दिल पे लुभाये।
मौन हो जाता हूँ जो याद उनकी आये, बरबस रोती हुयी आँखो के नीचे तब मुस्कान छा जाये।
पल पल तड़पता हूँ पास उनके पहुँचने के वास्ते, पास पहुँचके उनके न जाने क्यों शांत हो जाऊँ।
कोई गिला - शिकवा न है, न ही कोई फरियाद, फिर भी ख्यालों मैं रहता हूँ उदास।
अभी तो शुरूआत हुयी थी तो ये अंत क्यों आ गया, क्यों समय के दायरे में सिमट जाता है प्यार।
मिटाये मिट न रही है दूरी, वख्त के आगे ज्यों की त्यों पड़ी हुयी है जिंदगी।
अनमोल प्यार है तेरा कहाँ से मोल ले आँऊ, कहकहा लगता हूं ऐ दुनिया के मालिक तुझे कहाँ से देख पाऊँ।
आया था हमारे बीच मैं तो क्यों कर दी जलदी, बचपने के प्यार को जवानी में क्यों विधवा कर दिया।


- डॉ.संतोष सिंह