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Hymn No. 28 | Date: 22-Aug-1996
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बेबस है हम, अपनी इच्छाओं के कारण
बेबस है हम, अपनी इच्छाओं के कारण
जो भटका देती है मंजिल से हमें अपनी
हँसता होगा तू हमारी बेबसी पे
रो लेते है, हम भी हमारी बेबसी पे
ना दिन भर, पर कुछ क्षण ही सही याद करते हैं तुझे
ऐसी क्या खता हुयी थी, जो बिछुडना पड़ा तुझसे
अरे सुनते आये हैसंतों और फकीरों से
ये जंग और माया या काया सब तेरा है
तुझमें ही मिल जान है तो क्यों भेज दिया अपने से दूर
हम भी तो सुनें, तेरी क्या मजबूरी थी
मजबूर तो है हम सब माया में जीने को
अभिपूत्र तन पर इच्छाओं को ढोने को
दोष ना देते है तुझको पर अपनी करनी को रोते है ।


- डॉ.संतोष सिंह