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Hymn No. 2395 | Date: 18-Jul-2001
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पुकारता फिर रहा हूँ, जन्म दर जनम भटक रहा हूँ।
पुकारता फिर रहा हूँ, जन्म दर जनम भटक रहा हूँ।
दिल की बातें करने के लिये तड़प रहा हूँ।
अपने गीतों से दिलाना चाहता हूँ तुझे भरोंसा।
धोखा न दिया तुझे कभी, धोखा खाया हूँ अपने आपसे।
अपने आपको छोड़के अब आना चाहता हूँ तेरे पास।
कसक मसक रही है दिल को, मन में भी जन्मी है तड़प।
दूर दूर तक दिख नहीं रहा है, तेरे आने का अंदाज।
फिर भी दिलासा दिये जा रहा हूँ होगी मुलाकात जरूर।
पथराता सा जा रहा हूँ, तब कौंधती है तेरी बातें मन में।
रोम रोम में ऊष्मा का जन्म होता है, जो खींचती है तेरी और।


- डॉ.संतोष सिंह