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Hymn No. 2394 | Date: 17-Jul-2001
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हे सावले सलोने छायी रहती है हर पल नजरों के सामने मुरत तेरी।
हे सावले सलोने छायी रहती है हर पल नजरों के सामने मुरत तेरी।
फिर भी न जाने क्यों बाट जोहूं तेरी, लगाऊँ कयास जो हो जाये प्यार भरी मुलाकात।
समझ नहीं आता तरसता है क्यों दिल अभी तक, गाहें बगाहे होती है जो मुलाकात।
रूंध जाते है स्वर तेरे न होने पे, पर जब जब किया है याद कराया है तूने अहसास साथ होने का।
बावला बन गया हूँ तेरे पीछे, फिर भी मजबूर कर नहीं पाता तुझे आने को पास।
कब तक खेलेगा खेल लुका छिपी का, जो बंद आंखो से नजर आये तू खुली आँखो से ओझल होता है।
तलाश है कैसी जो मिलने पे खत्म न हुयी, प्यार में भी अनसुलझी पहेली खड़ी कर जाय।
मैं कैसा दास हूँ, जिसपर उसका मालिक करता नहीं विश्वास, तुझे क्यों न ही रास आये।
हर आहट पे चौंकता है दिल, नजरें पलटके वहाँ देखता हूँ कहीं वहाँ तू तो नहीं।
मन मारके भुलाता हूँ, तेरी मर्जी है कहके अपने आपको तुझसे दूर ले जाता हूँ।


- डॉ.संतोष सिंह