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Hymn No. 2387 | Date: 11-Jul-2001
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दोष नहीं देता मैं किसीको, जब दोषों से भरपूर हूँ मैं।
दोष नहीं देता मैं किसीको, जब दोषों से भरपूर हूँ मैं।
कर्मों के उपर क्यो आरोप डालूं, जब आलस भरा हो रोम रोम में मेरे।
किस्मत बिचारी क्या करे, जो पुरूषार्थ से रीता हो जीवन मेरा।
कैसे फलेगी फूलेगी मेरी चाहतो की बगीया, जब डाली नहीं खाद कर्तव्यों की।
दोषारोपण किसी और पे न करके, मैं बचना नहीं चाहता अपने दोषों से।
तेरी कृपा का फल है, जो कुछ न करके तेरे पास टिका हूँ।
किस मुँह से कहूँ, जब अपनी कथनी करनी में फर्क हो जमीन आसमां का।
समझ नहीं आता कैसे करुँ गुहार, जब तू देता है सामर्थ्यवानों को सहारा।
फिर भी अदा करता हूँ शुक्रिया तेरा, जो डालता है नजर इस नाचीज पे।
तसव्वुर पा जाता हूँ कुछ देर के लिये, गलतफहमियों के मुगालते में रहके।


- डॉ.संतोष सिंह