VIEW HYMN

Hymn No. 2386 | Date: 10-Jul-2001
Text Size
चला था नाराज होके अपने आप से, जमाने से दूर।
चला था नाराज होके अपने आप से, जमाने से दूर।
पर फैसला इससे उलट किया था तूने, निभाना होगा रहके जमाने से।
तसदीक कर दी मौन होके हमने, न चाहिए कुछ उलट तुझसे।
ख्वाबों में तेरे साथ होता हूँ, आँख खुलते क्यों तुझसे दूर पाता हूँ।
की हमने बहुत चिरौरी, पर न समझा प्यार में क्या है जरूरी।
पुरूषार्थ के हाथों में सौंप रखा था तूने सब कुछ, रोते थे रोना किस्मत का।
जद्दोजहद चलती है अंतर में, फिर भी प्यार करता हूँ तुझसे।
झूठा हूँ या सच्चा परवाह किये बगैर अलापता हूँ राग तेरे प्यार का।
आाज भले निभाना न आता हो, पर कल दोहराऊँगा तेरी कहानी को।
शुक्रियाँ अदा करता हूँ तेरी मेहरबानियों का, जज्बा जो कायम रखा प्यार का


- डॉ.संतोष सिंह