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Hymn No. 2385 | Date: 10-Jul-2001
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ऐसा कौन सा छेडूँ राग, जो कर जाये मत्रमुग्ध तुझको।
ऐसा कौन सा छेडूँ राग, जो कर जाये मत्रमुग्ध तुझको।
ऐसा कौन सा लाऊँ दिल, जो धड़का दे दिल को तेरे।
ऐसा कौन सा कर्म कर जाऊँ, जो कर दे मजबूर तुझको।
ऐसा कौन सा भाव भर दूं, जो कर दे भाव विभोर तुझको।
ऐसी कौन सी बात बताऊँ, जो सुनके झूम उठे दिल तेरा।
ऐसी कौन सी कथा कह दूं, जो खिलखिलाहट आ जाये मुंख पे तेरे।
ऐसी कौन सी शायरी सुनाऊँ, जो सुनके रीझ जाये मुझपे तू।
ऐसा कौन सा वार कर दूं, जो संवर न पाये प्यार में तू।
हक लगी रहती है हर पल दिल में, क्या करके बना लूँ तुझे अपना।
दोष होगा कोई मेरे में, पर निर्दोष तो है प्यार मेरा।


- डॉ.संतोष सिंह