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Hymn No. 2378 | Date: 03-Jul-2001
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शक्ति के बिना मानव नहीं है, पर भक्ति के बिना शक्ति तो कैसे मिलेगी, ओर भक्ति श्रध्दा होने पर आती है तथा बिना शक्ति के भक्ति नहीं होती।
शक्ति के बिना मानव नहीं है, पर भक्ति के बिना शक्ति तो कैसे मिलेगी, ओर भक्ति श्रध्दा होने पर आती है तथा बिना शक्ति के भक्ति नहीं होती।

प्रेम में सब कुछ है (परम प्रेम) पर वो भी अच्छे ढंग से करना आता नहीं।

सपना आरामगाह है, बिना किसी सपने का मनुष्य जी नहीं सकता।

जो बिना किसी संपने के रहते है वो संत होते है, ईश्वर की कल्पना में यह संसार घटित (व्यतीत) होता है।

मन सतत विचारमय है, मन में विचारों का अविरल प्रवाह बहता रहता है, ओर वही जीवन की निशानी है।

दिल में जब शंका होती है, तब वह रोग के बिना रोगी हो जाता है।

कुशंका या किसी और प्रकार की शंका अंतर में रखना ही रोगों का मूल है।

पुरूष जब संतोषी बनता है, तो यत्नों से बाहर आता है ओर स्त्री जब संतोषी बनती है तो संसार में स्वर्ग उतर आता है।

ओचिता का विश्वास ज्यादा टिकता नहीं, ओर शंका निर्मूल होने पर फिर शंका नहीं होती।

अचानक जो विश्वास पैदा होता है, वो कभी भी ज्यादा देर तक टिकता नहीं है जैसे शमशान में जाने के बाद वैराग्य, कथा सुनने के बाद या मैथुन के उपरांत तो ये अचानक जो विश्वास उत्पन्न होता है तो वो टिकता नही है, ओर जब तक मन के अंदर लेशमात्र भी शंका रहती है तो विश्वास नहीं होता, ओर शंका के निर्मूल होने पर शंका फिर से नहीं होती।


- डॉ.संतोष सिंह