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Hymn No. 2377 | Date: 01-Jul-2001
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जमाने का दस्तूर न निभाने आया हूँ, प्यार की कोई नई रस्म निभाना हूं चाहता।
जमाने का दस्तूर न निभाने आया हूँ, प्यार की कोई नई रस्म निभाना हूं चाहता।
कोई कसम न खायी है, कि वो न करुँगा, कि ये न करुँगा बस मेरी हिचक तू तोड़ दे।
फरमाइशों की कोई लिस्ट न बची है, आजमा ले चाहे तू कोई भी कसौटी पे।
हारके भी न आया हूँ पास तेरे, खुद को हार जाना चाहता हूँ हाथो तेरे।
संगदिल इतना भी न हूँ, बार बार पानी फेरता रहूँ जो तेरे किये हुये पे।
यार माना तेरे कतार में है सबसे पीछे, कसम से मिटने के वख्त रहूँगा सबसे आगे।
दोषो का अंत न है मेरे तो क्या, छोडूंगा न कभी संग प्रयासों ओर गुजारिशों का।
कृपा है तेरी अनंत कृपा से, हो भी जो हाल मेरा, पर कायम हो जाये दिल पे राज तेरा।
सच है अधूरा घड़ा छलके बहुत, पर मन की बात बताये बिना रहा न जाये, तुझसे।
बहाकाने की कभी कोई इच्छा न थी, पर अब खुद ही बहक जाना चाहता हूँ तेरे पीछे।


- डॉ.संतोष सिंह