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Hymn No. 2376 | Date: 29-Jun-2001
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माँ बैठा हूँ तेरे आगे तेरा गुणगान करने को, जैसे दीप जले सूरज के आगे।
माँ बैठा हूँ तेरे आगे तेरा गुणगान करने को, जैसे दीप जले सूरज के आगे।
पड़ गया सोच में, कैसे करुँ बखान जो देखा न कभी तुझे।
मेरी कल्पनाओं से परे तू है सुंदर शक्तिशाली, अल्प बुध्दि कर नही सकती बखान तेरा।
बड़े बड़े चारण पंडित करे तेरा बखान, फिर भी छूट जाता है बहुत कुछ तो मेरी क्या बिसात।
तेरे आगे कुछ कहने की न थी हिंम्मत कभी, लाकर खड़ा कर दिया गुरूदेव ने पास तेरे।
देखके भी न देख पाया, मूर्खाई कह या लड़कपन तेरे आगे बेसुरी बंसी बजाई।
माँ तू तो जानती थी सब कुछ, फिर क्यों छोड़ा मुझको हाल पे अपने।
हाल मेरा बद से बदहाल होता गया, ओर तु भी मुक्कराती देखके असमजस में पड़ गया मैं।
गूंज उठी तब अंतर में तेरी बात, तब मैं जान गया तू न अनजान है मुझसे।
निकला था गुणगान करने तेरा, पर रोने लग गया रोना किस्मत का।
मेरे हाल का जिम्मेदार थे मेरे कर्म, पर तेरी अनुपम कृपा को भूल गया।
मां चाहता हूँ एक बार फिर से खों जाउँ तेरे प्यार में सदा के वास्ते।


- डॉ.संतोष सिंह