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Hymn No. 2375 | Date: 29-Jun-2001
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सपने संजोया था जो मन में, अब जाके आयी है बारी साकार करने की।
सपने संजोया था जो मन में, अब जाके आयी है बारी साकार करने की।
दिल तड़पता था जो हर पल, अब जाके हुआ संतोष देखके उनको।
फरियादों से न था कोई लेना देना, जब सांवला सलोना लगने लगा अपना।
जिन बातों को अस्पष्ट स्वरों में गुनगुनाता था, वे गूंजने लगे गीतों में।
अनजान था अब तक प्यार की रीतों से, प्यार होते जान गये हम।
होने लगा सारे राग द्वेषों का अंत, जब व्यापार का मुकाम कायम हुआ दिल में।
कौन अपना कौन पराया, जब हर कोई मन को भाने लगा।
डर को डरके पीछे हटते देखा, जब सारे भेदों को मन से मिटते देखा।
बटी हुयी है दुनिया सही बात है, पर प्रभु ने सबको एक धागे में पिरोया है।
व्यवहार से हो सकता है अलग, पर इक् घर से सबका आना - आना है।


- डॉ.संतोष सिंह