VIEW HYMN

Hymn No. 2367 | Date: 24-Jun-2001
Text Size
अनंत प्यार की दुनिया से आया हूँ, तेरे ख्वाबों की दुनिया में।
अनंत प्यार की दुनिया से आया हूँ, तेरे ख्वाबों की दुनिया में।
न जाने कैसे लगा चस्का तेरी माया का, हमने तो चाहा था तुझको।
ये कर्मों की शुरूआत कहाँ से हुयी, जो थे हम तेरे अनंत प्यार का हिस्सा।
तू कैसे पड़ गया इतना अकेला, जब तेरे दामन से बंधी थी सारी खुशियाँ।
क्या ये सच्च नहीं, अपना अभिन्न अंग अलग किया था मौज के लिये।
कैसे ले रहा है खेल का मजा, हमको संसार में धकेलके।
कौन सा इसमें कुछ राज छिपा है, जो हमको तो न बताना चाह रहा है।
जब है सब कुछ संसार में तू, तो अच्छे बुरे की बात क्यों।
इतने धर्म क्यों बनाये, इनमे कौन सा रंग है छिपा।
टिकी है तेरी सृष्टि कामनाओं के खेल पे, तो कैसे बन गया जेल।
भक्ति से ही क्यों संभव है मुक्ति, तेरी शक्ति से क्यों पड़े है अलग - थलग ।
न जाने कितने सवाल उपजते है मन में, फूट जाते है बुलबुलों की तरह।


- डॉ.संतोष सिंह