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Hymn No. 2362 | Date: 20-Jun-2001
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है... मसीहा तू मेरे अंतर को सींच दे प्यार से।
है... मसीहा तू मेरे अंतर को सींच दे प्यार से।
सारे दोष ढल जाये प्यार में, प्रकटे जो भी वो तो प्यार बनके।
अपना पराया का न कोई भेद हो, बरसाता रहे निगाहों से प्यार।
मन के सारे लोभ कामनाओं का स्वरूप ढल जाये प्यार में।
अरे कभी आ जाये किसी बात पे रोष, तो वो भी उपजे प्यार बनके।
मुझे न लेना देना किसी गुण अवगुण से करता रहूँ बखान प्यार से तेरा।
प्यार चाहता हूँ तो तेरे वास्ते, न ही कोई इच्छा के वास्ते।
प्यार से भरे गीत हो गये है, न ही जीत सका हूँ प्यार से दिल को तेरे।
मेरी कमियों को दूर कर दे प्यार से तेरे, प्यार के सिवाय न उपजे कोई विचार।
प्यार में रहूँ मदहोश इतना, किंचित न देंखूँ किसीका कोई दोष।


- डॉ.संतोष सिंह