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Hymn No. 2361 | Date: 20-Jun-2001
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तड़प के बीच में कहाँ से आ जाती है माया के प्रति ललक।
तड़प के बीच में कहाँ से आ जाती है माया के प्रति ललक।
प्यार के राह में, कहाँ से आ जाता है कामनाओं का वेग।
डरता न हूँ, अपने हाल से, पर खोना नहीं चाहता तेरे प्यार को।
ऐसा न है किया न प्रयास, पर हुआ हाल हर बार एक जैसा।
दोष न देता हूँ अपने किये का, न ही रोना रोता हूँ हालातों का।
अजिज आ गया हूँ अपने आप से, पर छोड़ना नही चाहता हूँ प्रयासों को।
दासता तो तेरी स्वीकार कर ली है, कब बांधेगा तू मेरे सर्वस्व को।
इंतजार है मुझे तेरा तुझे मेरा हम दोनो आधारित है एक दूजे पे।
आदत लग गयी है मुझे तेरी, जो ढलता जा रहा है स्वभाव में मेरे।
आज जो लग रहा है बातों का सैलाब, होगा जरूर वो वर्तन में मेरे।


- डॉ.संतोष सिंह