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Hymn No. 2352 | Date: 11-Jun-2001
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ऐसा न है कि अहसास न है तेरे प्यार का, पर अपनी आदतों के है शिकार।
ऐसा न है कि अहसास न है तेरे प्यार का, पर अपनी आदतों के है शिकार।
कई बार कि कोशिश बदलने की, पर चलते चलते चले गये पुरानी राहों पे।
चाहता हूँ अपने आपको बदलना, बदलके कुछ कर दिखाने का।
समझ नही पा रहा हूँ, पर समझने पर क्यों कुछ कर नहीं पा रहा हूँ।
क्यों खेल रही है किस्मत मुझसे इतना, तेरे रहते कब मैं कहा कर दिखाऊँगा।
कई बार बात बनते बनते बिगड़ जाती है, जो करने की आदत नही होती।
लोगों की हंसी का पात्र बन चुका हूँ, पर उससे भी ज्यादा तेरा कहा न कर दिखाना।
जब जब लगता है अब हुआ परिवर्तन जीवन में, तब अपने आपको वहीं पाता है।
समझने और चाहने से परे दुनिया में तेरा बनके करना चाहता हूँ।
बात बनने बिगड़ने से ज्यादा तेरे प्यार के संग मुसाफिरी करते हुये रहना चाहता हूँ।


- डॉ.संतोष सिंह