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Hymn No. 2347 | Date: 08-Jun-2001
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साधारण इंसान हूँ, न कोई अवतार, मिले है गूंण भी सांधारण पर देख रहा हूँ सपना विशेष
साधारण इंसान हूँ, न कोई अवतार, मिले है गूंण भी सांधारण पर देख रहा हूँ सपना विशेष
करता नहीं किसी की बातों से कोई गुरेज, हूँ अपना बनाना प्रयासों से विशेष ।
हंस रहा हूँ हाल देखके अपना, फिर भी करना चाहता हूँ फलीभूत तेरी कृपा से।
हर कदम पे माया मन मोह रही है कारण जो भी हो, पर बदलना चाहता हूँ चाहत को करने में।
चलने के प्रयासों में फिसला हूंगा कई बार, पर बरतने कि हिम्मत न खोई है अब तक।
मजाक मैं का खुद से बना रहा हूँ, ऐ खुदा कर्मों के भरोसे कर्मों से लड़ता आ रहा हूँ।
सचेत रहते रहते न जाने कब अचेत हो जाता हूँ, पर तेरी कृपा से आगे डग भर जाता हूँ।
अंजाम को पाने निकला हूँ, अंजाम जो भी हो मेरा पर अंजाम से जुड़ होगा तू जरूर।


- डॉ.संतोष सिंह