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Hymn No. 2337 | Date: 02-Jun-2001
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माँ, आज इक् बात तू बता दे, कि नालायक पुत्र–पुत्र नहीं होता।
माँ, आज इक् बात तू बता दे, कि नालायक पुत्र–पुत्र नहीं होता।
मां, मैं तेरे प्यार पे करता नहीं शंका, पर अपनी असफलताओं से डरके हूँ पूंछता।
मां, तेरी तो चलती है सारे जग पे, क्युँ न चले इस पुत्र के मन पे।
माँ, तू चाहें तो हाथ छुड़ा सकता नहीं, तो क्युँ अलग का हूँ राग जपता।
माँ, मैं अपने कुकर्मों का दोष मढ़ता नही, पर आस रखता हूँ तेरे प्यार की।
माँ, देती रही तू सदा संजोना न आया मुझे, तो क्या तू छोड़ देगी मुझे हाल पे अपने।
माँ, तेरे सपनो को साकार करने की न कभी की कोशीश, ये दोष कहां से आया मुझमें।
माँ, हैरत में हूँ कि गैरत भी न बची इतनी, कि ललकार के कह सकूँ तुझे करनी है मेरी।
माँ, आस रखता हूँ तुझसे बहुत कुछ की, पुरूषार्थ की राह पे तेरे रहते बढ न पाया।
माँ, अतुल ज्वार भर दे दिल में, जो च्युत न होने दे तुझको एक पल को भी मेरे दिल से।


- डॉ.संतोष सिंह