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Hymn No. 2336 | Date: 02-Jun-2001
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बखान नहीं कर सकता प्रभु जी तेरी कृपा का, कितना भी कह दुं छूट जायेगे ढेर सारे।
बखान नहीं कर सकता प्रभु जी तेरी कृपा का, कितना भी कह दुं छूट जायेगे ढेर सारे।
अदना की न थी कोई औकात वो तो था मोहताज, आज जो कुछ भी हूँ तेरी कृपा से।
ये निराशा से भरी कोई बात न है, विकट परिस्थितीयों में जो न रहता साथ तो न रहते हम आज।
गाज गिरी कितनी बार कर्मों की, बार बार तूने बचाया झेलते हुये तन पे अपने।
हारे हम हार न मानी तूने कभी, मन को चेंताने के लिये ज्ञान गगा का पान कराया।
हर बार उबारा निराशाओं के गर्त से, प्यार से दिल में आशाओ का दीप जलाया तूने।
दुनिया के झंझावातों से अडिग होके लड़ना, फिर कदम दर कदम आगे बढना सिखाया तूने।
रूठी हुयीं किस्मत को पुरूषार्थ से बदलना, हंसते हुये हर कार्य को करते जाना तूने सीखाया।
दुखो में मुस्कराना ओर बेहाल सी परिस्थितियों में साहस रखना तूने सिखाया।
जब जब अकेलेपन का हुआ एहसास, तो आयी आवाज अरे पागल मुझे क्यों तू भूला।


- डॉ.संतोष सिंह