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Hymn No. 2333 | Date: 30-May-2001
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साधारण से साधारण अक्षरों को गढ देना असाधारण शब्दों में कोई तुझसे सीखे।
साधारण से साधारण अक्षरों को गढ देना असाधारण शब्दों में कोई तुझसे सीखे।
साधारण से साधारण शब्दों को पीरो देना नगमो में कोई तुझसे सीखे।
बेजान सी महफिल में प्यार से जान डाल देना कोई तुझसे सीखे।
सुर को छेड़ना फिर लय में लाकर उठा पटक करना प्यार से कोई तुझसे सीखे।
विषम से विषम परिस्थितीयों में नये नये रागो को रचते रहना कोई तुझसे सीखे।
किसीके मन का न करके फिर भी मन को मोह लेना कोई तुझसे सीखे।
नजरो से प्रेम का बाण एक साथ कइयों पर चलाना कोई तुझसे सीखे।
जीव हो या निजीवि हर इक मोह लेना कोई तुझसे सिखे।


- डॉ.संतोष सिंह