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Hymn No. 2332 | Date: 30-May-2001
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कुछ भी न था पास मेरे, फिर भी रखा तू साथ अपने।
कुछ भी न था पास मेरे, फिर भी रखा तू साथ अपने।
कैसे करूँ शुक्रियाँ अदा, तेरी अनगिनत मेहरबानियों का।
सुना था तूने दिया है सब कुछ अपना, जिन्होंने अर्पण किया सब कुछ।
इस निठल्ले के पास न था कुछ ऐसा, जो बढ़ा सके मान तेरा।
गुलाम था अपनी मनोवृत्तियों का, पकड़ ले चल आजादी के राह पे।
दर दर की ठोकरे खाके मुरझाया हुआ था, भरा भाव दिल में उमगो का।
कभी हार होती नही जीवन में, सब कुछ जीतने का राज तूने समझाया।
और तो और हर जगह से हारे हुये को दिल से लगाया तूने।
विषमताओं से भरे जीवन में, सद्गति से चलना सिखायाँ तूने।
झुठी जिद्द को न स्वीकारा कभी, निर्मलता का भाव भरता रहा मन में।


- डॉ.संतोष सिंह