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Hymn No. 2287 | Date: 26-Apr-2001
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इक बार फिर से कुछ कहना चाहता है दिल।
इक बार फिर से कुछ कहना चाहता है दिल।
कितना भी कह दूँ कुछ, पर भरता नही है मन।
तकते रहना चाहता हूँ, यूं ही एकटक तेरी ओर।
अनायास खो जाना चाहता हूँ, नजरों में नजर डाले।
करे कितना भी गजर इशारा, गवारा न करुँ।
चलता रहे दौर आशिकी का, होता रहे कुछ भी जमाने में।
मिट जाये सारी तलाश, जो मिल गया तेरा ठिकाना।
तारी हो जाये तेरा प्यार इतना, करुँ न इंतजार बारी का।
मरा हूँ सनम तेरे प्यार का, किसीको इल्जाम क्यों देना।
बन चुका है तू मेरा सब कुछ, तो कही ओर क्यों जाना ।


- डॉ.संतोष सिंह