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Hymn No. 2288 | Date: 26-Apr-2001
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मुझे नाज है मेरी किस्मत पे, न औंरो की शैदाई पे।
मुझे नाज है मेरी किस्मत पे, न औंरो की शैदाई पे।
रहा हूँ विचरता अपनी आवारगी में, न कि किसी जुल्फों के साये में ।
कबूल करता हूँ दुखाया हूँ यार के दिल को, पर सारी रात गुजारी है करवटों में।
तोपन नहीं डालना चाहता हूँ अपने किये पे, तेरी हर सजा का जो उम्मीदवार हूँ।
बनना - बिगड़ना तो खेल है किस्मत का, हमने तो दम भरा है तेरे नाम का।
मुझे नहीं पता क्या है होनेवाला, मैं तो मिट रहा हूँ तेरे इंतजार में।
दिल तो था दोस्ती का हाथ है बढ़ाये, पता नही मन ने क्यूँ काटें चुभाये।
चाहत तो है तेरी श्वासों में सिमट जाने की, हर हाल में हज्र तो एक है मेरा।
गाता हूँ गीत अब भी प्यार का, इस विश्वास से तू सुनता होंगा जरूर।
पी लूंगा दुनिया भरके गमों को, पर तेरे पास जब भी आऊँगा हँसते हुये आऊँगा।


- डॉ.संतोष सिंह