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Hymn No. 2281 | Date: 25-Apr-2001
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कितना भी कह ले कोई न, पर मेरे प्यार पे उंगली उठा सकता नहीं ।
कितना भी कह ले कोई न, पर मेरे प्यार पे उंगली उठा सकता नहीं ।
कितना भी दे दो हवाला किसी बात का, पर मेरे दिल की बात कोई झुठला सकता नहीं।
बंदगी न ये मेरी है, ये तो उसकी है जिससे है दिल लगाया उसकी पहचान है।
मुआ मेरी क्या बिसात उसके प्यार में तो बन जाती है अच्छे अच्छो की पहचान।
पलकें बिछाए रहता है वह, जो सर पर कफन बांधके कहा करते है उसका।
निभाते है जो जी जान से रिश्ते, कहीं हमारी वजह से लग न जाए दागदामन पर उसके।
रसूख उन सबकी वह है बनाता, दूनिया की आग-लपेटों में मांझी का किरदार है निभाता।
कोई अंतर नही, कोई जतन नहीं, उसको जीतना है तो लेना पड़ता है अमर प्रेम का सहारा।
इक बार जो हाथ पकड़ा दुनिया के दुरूह दौर में, फिर कभी न है साथ वो छोड़ता।
कमी न रहती उसकी और से कभी, कमियों के मारे बंदे जो हम है।


- डॉ.संतोष सिंह