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Hymn No. 2282 | Date: 25-Apr-2001
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बहुत दिनों के बाद हुआ है कुछ ऐसा आज, कि तेरे सामने बैठके कुछ कहने को कह रहा है
बहुत दिनों के बाद हुआ है कुछ ऐसा आज, कि तेरे सामने बैठके कुछ कहने को कह रहा है
दिल में हुई है हलचल मिठ्ठी सो, जो रोम-रोम में बनके तरंग पैदा कर रही है उमंग।
मन न जाने क्यूँ दौड़ पड़ा है तेरी ओर, सारी दुनिया की रंगीनियों को छोड़के।
नजरों में रह - रहके उभर रही है तेरी अनुकृति, चौंक जाता हूँ इस ख्याल से कहीं तू पास तो न मेरे।
स्पष्ट आभास पाता है तन, जैसे अभी - अभी तूने फेरा है पीठ पे हाथ मेरी।
अनायास हंस पड़ता हूँ अचानक, जब ऐसा लगता है तूने कुछ कहा विचारों में मेरे।
समझ नहीं आता ये मेरे जज़बात है कि तेरे प्यार कि करामत।
मुझे लेना - देना न है कुछ से, पर तेरे प्यार पे आँच न आने देना चाहता कभी।
दिया है तूने बहुत कुछ मुझे, लगता है उतना ही काफी है जिंदगी गुजर जाने के लिये।
झूठा हो सकता हूँ पर तेरे बिना मैं कभी नहीं था संसार में।


- डॉ.संतोष सिंह