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Hymn No. 2273 | Date: 21-Apr-2001
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कब क्या बदल जाये कोई नहीं जाने, मैं वहीं का वहीं हूँ कोई नहीं जाने।
कब क्या बदल जाये कोई नहीं जाने, मैं वहीं का वहीं हूँ कोई नहीं जाने।
बदलने को जो बदलता है वो अंतर में, बदलने वाला जाने, बदलने वाले जाने।
चैन नही रहता बेचैन जो रहता है दिल, मिले बगैर खिलता नहीं दिल।
सिलसिला जब प्यार का टूटता है, तो मोहताज हो उठता है सब कुछ के होते हूये।
बेसब्री से भरा हर पल गुजरता है, हर नजर लगती है इल्जाम देते हुये।
साया भी दामन तब छोड़ देता है, अपने भी गैंरो जैसे बरताव करते है।
सह सकता हुँ दुनिया भरके इल्जाम, सह नही पाते पल भर की तेरी नाराजगी को।
बहोत कुफ्त मचती है तब अपने आप पे, तेरा हाल देंखके कोसता हूँ अपने आपको।
कोई भी सजा कम है मेरे वास्ते, हमने जो तेरी लाज को संजोके रखा नहीं।
दिलबर तेरी नफरत नहीं, चाहता हूँ ऐसा जिगर हो तेरी कृपा इतनी जो कर जाये तेरा कहा।


- डॉ.संतोष सिंह