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Hymn No. 2271 | Date: 20-Apr-2001
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ढुंढ़ते थे सुकुन को हम, ढुंढ़ते ढुंढ़ते जा पहुँचे दर पे तेरे।
ढुंढ़ते थे सुकुन को हम, ढुंढ़ते ढुंढ़ते जा पहुँचे दर पे तेरे।
नजर मिली जो बचा कुचा था, वो भी जाता रहा प्यार में तेरे।
आग तो जलाके खाक कर दे कुछ ही देर में इस बेजान तन को।
पर तेरा प्यार जलाये इस दिल को प्रतिपल, और पुछे ना हाल दिल का।
खाता हूँ कसम रोज ना करूंगा नजरे दो चार तुझसे।
पर पल भर में हो जाता हूँ बेजार, फिर ढुंढ़ता हूँ चारों ओर तुझे।
मुझे खुद भी ना समझ आये मेरा हाल, ये क्यों होता हूँ बेहाल।
जिहाद करने चला था, प्यार में फरियाद करने लग गया।
लुटाने से पहले लुट जाने का रोना रोने लग गया।
ये संतोष ना है किसीकाम का, न जाने कौन सा काम किया था पिछले जन्मों में।


- डॉ.संतोष सिंह