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Hymn No. 2256 | Date: 13-Apr-2001
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कौन जीता प्रभु को, जिसने गाया गीत दिल से।
कौन जीता प्रभु को, जिसने गाया गीत दिल से।
कौन चुराये प्रभु के मन को, जिसका मन रच बस गया प्रभु में।
कौन बहलाये प्रभु के दिल को, जो खोया रहता है हर पल प्रभु में।
कौन खेले आँख मिचौली प्रभु से जिसने हारी जिंदगी हाथों प्रभु के।
कौन करे प्यार प्रभु को, जिनका हो दिल भोला भाला।
कौन करे परेशां प्रभु को, जो हर पल दिल्लगी करते है दिवानगी प्रभु से।
कौन करे चिंता प्रभु की, परवाने जो हर पल होते है तैंय्यार खाक होने के लिये प्रभु के वास्ते।
कौन कर जाये मस्त प्रभु को, जीवन के हर पहलु में रहके मस्त कर देते है मस्त पभु को।
कौन फाँसता है प्रभु को, जो लोक के फकीर ना बनके नये तानो बानो में फंसके।
कौन बहका ले जाये प्रभु को, जो हर लेते है प्यार से प्रभु की आँखो की नींद।


- डॉ.संतोष सिंह