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Hymn No. 2257 | Date: 13-Apr-2001
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संसार में रहके रहना नहीं चाहता संसार में।
संसार में रहके रहना नहीं चाहता संसार में।
संजोए हूँ सपने तेरे प्यार को लेके साकार करना चाहता हूँ।
मौका दिया न जाने तूने कितनी बार, इस बार गंवाना नही चाहता हूँ।
अंजाम जो भी हो, अंजाम देना चाहता हूँ इस बार।
दास्ताँ है ये प्रेम की, जिसको लिखना चाहता हूँ लहू से अपने।
कल की बात दोहराना नही चाहता हूँ, जो खत्म कर देना चाहूँ आज।
राज़ रह न गया, तेरे मेरे बीच, जो पर्दाफाश हो गया सब।
रब माना खेल है तेरा, अब खेलना चाहता हूँ इसके संग।
रंगके प्यार के रंग में, दंग कर देना चाहता हूँ तुझको।
जंग सदियों पुरानी खत्म कर देना चाहता हूँ, मिटके तेरे हाथों।


- डॉ.संतोष सिंह