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Hymn No. 2251 | Date: 11-Apr-2001
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हमको ऐतराज न था किसी से, ऐतबार न रहा था खुद पे।
हमको ऐतराज न था किसी से, ऐतबार न रहा था खुद पे।
बातें करते थे बड़ी लंबी चौड़ी, जब आता था मौका चूक जाते थे।
मानता न था कहना अपने गुरू का, रखा था न जाने किस बात की जिद्द।
एक बार नहीं न जाने कितनी बार पिट्टी भट्टू, फिर भी हद कर रखी थी हमने।
लाख समझाया गया प्यार से दुलराया गया, पर हमने जो न डानी थी सुधरने की।
मनमानियों का अंत होते ना देखके, तब मनमानी करने की उसने ठानी।
वो भी सानी रखता है अपने आप में, अच्छों अच्छों को ठीक करता है एक ही वार में।
तो इस बच्चें की बात कहाँ, जब चलाया व्यंग्य बाण, निशाना लगाया दिलपे हमारे।
रोने को रोना होता नहीं था ले हंसने की बात कहाँ, तब उसके आगे भीगी बिल्ली बनके हम आये।


- डॉ.संतोष सिंह