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Hymn No. 2250 | Date: 11-Apr-2001
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अरें। रे मर चुका संतोष मर जाने दो, करना न कोई तुम शोक।
अरें। रे मर चुका संतोष मर जाने दो, करना न कोई तुम शोक।
राज की बात जानोगे तो तुम भी तैयार हो जाओगे मरने को।
डर लगता नहीं यहाँ मरने से, जो मरता है बस एक बार है मरता।
कोई इच्छा नहीं, फिर भी सारी इच्छा है अपनी, जो पूरी होती है निश्वास होने पे।
करो विश्वास तुम मेरा, ढलते उगते है सूरज चांद दिल में हमारे।
पलकों के झपकने से बदल जाती है न जाने कितनी दुनिया।
होता नही किसी का कोई मतलब, फिर भी हर कोई रखता है मायने।
किंचित न भेद है जीव अजीवो में, मिलता है मौका बारी आने पे।
तारी रहा है प्यार और ज्ञान का भूत, महाभूत भी बदलते है कहने पे।
सोचों जरा क्या हाल होता है, मत चूको मौका इस बार मरने का।


- डॉ.संतोष सिंह