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Hymn No. 2239 | Date: 07-Apr-2001
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जिदगी के हर पलों में ढुंढ़ता हूँ तुझे, खामोश वादियों से पूछता हूँ तेरा दर।
जिदगी के हर पलों में ढुंढ़ता हूँ तुझे, खामोश वादियों से पूछता हूँ तेरा दर।
हंसती है चंचल पवन फिर भी प्यार का गीत छेड़ता हूँ, राग देते नहीं साथ फिर भी गाता हूँ।
ऐ प्यार के मसीहा ऐसा क्या नहीं मेरे पास, जो तू मेरे हाथ आता नहीं।
लाख रहूंगा तड़पता तेरे साथ रहके, क्या मेरी आह में दम नहीं जो मजबूर करे तुझे।
कब तक रहूंगा तड़पता तेरे साथ रहके, क्या मेरी ऑह में दम नही जो मजबूर करे तुझे।
ख्वाबों को अपने साकार करना चाहता हूँ, ख्यालों से चुराके प्यार के रंग भरना चाहता हूँ।
गुरूर कोई नही पर तू बन गया है जरूरी, वास्ता किसका हूँ कि तू साथ हो जाये मेरे।
अंन्तद्वन्दों से घिरे गुजरते है पल, मन ही मन मजा तो बहुत आती है पर हाल सजा पाने जैसा होता है
छेड़ना चाहता हूँ तुझे, पर पास पहुँचते क्यूं ओढ़ लेता हूँ झिझक का पर्दा।
ठानी कई बार कि लूंगा दम नहीं हो जाऊंगा चूर तेरे प्यार में, पर पता नहीं क्या हो जाता है तुझसे अलग होते।


- डॉ.संतोष सिंह