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Hymn No. 2235 | Date: 06-Apr-2001
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है आया रे आया रंग रसिका मन बसिया प्रेम नगर से लेके संदेश प्रेम का।
है आया रे आया रंग रसिका मन बसिया प्रेम नगर से लेके संदेश प्रेम का।
प्रेम नगर से आया है राही, प्रेम का संदेशा लेके।
गाता है गीत प्रेम का, चुरा ले जाता है दिल प्रेम से।
धड़कते दिलों को बेचैन कर जाता है रातों की नींद चुराके।
उफ करके रह जाते है हम, यादों में चुपचाप सफर करते हुये।
संजोया हुआ रहता नहीं कुछ अपना, लुटा बैठते है जो प्यार से।
सिखाता है गुपचुप प्यार को प्यार कैसे करते जाना।
एक एक हसरतों को करता है पूरा, रखता नहीं दरकार किसी से।
स्वीकारता है सब को दिया हुआ है प्रेम से दो या यू हि दे दो।
टिकता है उसी का जिसने प्रेम से प्रेम को अर्पित किया।
एक बार जो जुड़ा नाता फिर नहीं टूटता बदल जाये चाहे कितने जनम ।


- डॉ.संतोष सिंह