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Hymn No. 2234 | Date: 06-Apr-2001
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न जाने कितना कुछ कहना चाहूं, जुबां तक आते आते गुम हो जाये शब्द मेरे।
न जाने कितना कुछ कहना चाहूं, जुबां तक आते आते गुम हो जाये शब्द मेरे।
बानगी है तेरे प्यार की या मेरे दिल की तड़प, रहूं चाहे कही भी याद दिलाये तेरी।
न जाने कितने सवाल आते है मन में, बगैर तेरे कैसे गुजरेगा ये जीवन मेरा।
रहता हूँ इसी उघेड़ बुन में हर पल, क्या कर दूं कि जो हो जाये तू मेरा।
करम है ऐसे जो पड़ने न देते तुझे नरम धरम का मरम समझ न पाऊँ।
फिर भी उठलाता हूँ तेरे प्यार पे, उफ तक नही करता अपने हाल पे।
बंदा बदनसीब होगा दुनिया की नजरों में, पर वो तो खुशनसीब माने तेरे साथ रहके।
हाँ अभी तक तुझे मजबूर करना न आया, फिर भी तेरे बगैर जीना नही सीखा।
दास्तां बनना चाहता है वो अमर प्रेम की चाहे चुकानी पड़ जाये कोई भी कीमत।
ये सच है तेरे सिवाय कुछ न है पास मेरे, तू ही है अनमोल धन मेरा।


- डॉ.संतोष सिंह