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Hymn No. 2224 | Date: 22-Mar-2001
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रेगिस्तानों में फूल खिलते हुये देखा, पत्थर दिल इंसानो में करुणा के आंसू बहते देखे।
रेगिस्तानों में फूल खिलते हुये देखा, पत्थर दिल इंसानो में करुणा के आंसू बहते देखे।
जो न सोचा था उसको भी होते देखा, तेरे पास आके दुनिया को बदलते देखा।
मालिक मत कर पुकार अनसुनी इस बार, बंदे के वास्ते कर लेना तू अपना कल्याण।
मैंने तो सुना था प्रेम से जिसने तुझे जो दिया है, किया है सदा से तू स्वीकार।
मेरे पास तो अनमोल प्रेम भी नहीं, जिसे देके दिल को तेरे खुश कर जाऊँ।
न मैं बहुत बड़ा पुरूषार्थी जो पुरूषार्थ करके कुछ अनोखा बढ़ा सकूँ तेरे मान को।
मिसाल हूँ निकम्मेपन की बेहयायी के चरमोत्कर्ष का चस्पां चिपका है मुझपे।
फिर भी आया हूँ गुहार करते कुछ दिया है तूने उसे सौंपना चाहता हूँ तेरे हाथ।
मेरा न कोई उपयोग किसी के वास्ते, ले तू मेरी ऊपर हो जायेगा सदुपयोग।
न जाने कितने तरसतों को नवजीवन मिल जायेगा, दुनिया से बेमलब से भरा एक कम हो जायेगा।
सहेज न सका तेरी दिये हुई मोहब्बत को, न किया किमत बेशकीमती चीजों का।
इस बार हंसके न तू टालना, फरियाद नहीं पुकार है कातर दिल की न करना तू अस्वीकार।


- डॉ.संतोष सिंह